स्लो

बहुत हीं धीमें हैं आप
गति समझ नहीं आती
इतनेंं देर में न जानें
नियति क्या कर जाती

शायद आपसे दूर चली जाती
शायद वापस न आ पाती
शायद वो अंतिम घड़ी होती
मैं आपके साथ खड़ी होती

मेरी बात मानते नहीं
कर लूं कैसे ये यकीं
कल को ऐसे न रहोगे
धीमा हूं, ये न कहोगे

मुझे गति से कोई प्रेम नहीं
न हीं धीमेपन से घृणा मुझे
पर चाल ऐसी तो चलो मगर
बाहें पसारे जीवन की डगर

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