जीवन राह

आंखों में पत्ते थे
पत्तों पर बूंदें थीं
पलकों पर ओस बिछी
पुतलियां भी गीली थीं

मन थोड़ा व्याकुल सा
चेहरा था बुझा हुआ
उदासी सी छाई थी
पीड़ित क्यों चेतना थी

पल सुख का आता है
संग दुःख भी लाता है
ज्यों दो पहलू सिक्के के
ऐसा ही जीवन ये

बस चलते जाना है
रास्तों को बनाना है
पड़ाव तो आएगा हीं
हार न मानना है

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