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Showing posts from June, 2022

दूरियां

मेरे मन की भावनाओं से भला क्यों खेलती हो तुम ? जानती हो, तुम्हें चाहता हूं तुम्हारी यादों में जीता हूं मेरे प्रेम को भला बताओ क्यों नहीं समझती हो तुम ? बातें मेरी बूझती हो तब भी दूर रहती हो देख मुझे मुस्कुरा देती हो दूरियां क्यों बनाती हो तुम ? प्रेम बंधन नहीं जानता प्रेम दूरियां नहीं मानता चाहता हूं तुम्हें अपनाने को क्या करूं तुम्हें पाने को ? पास आकर दूरियां बनाती कहो क्यों इतना इतराती

चेहरा

ये तेरा मुस्कुराता चेहरा ये होंठों की लाली ये सुनहरे बाल तुम्हारे ये रंगों से रंगी साड़ी ये बदन चंदन सा इसका लेप लगा लूं आ जाओ मेरी बाहों में तुम्हें स्वयं में समा लूं जी भर तुझको प्यार दूं खुशियों भरा संसार दूं इतना चाहूं मैं तुझको चाहत का अंबार दूं

अपनों से भी सोच कर बोलूँ ?

मुझमें सच्चाई है, बातों में रुबाई है बस, कहने से पहले, सोचता नहीं हूँ मुझमें इतनी सी कठिनाई है विचित्र ये अपनेपन की दुहाई है   पर मेरी बात का बुरा मत मानना मुझको ह्रदय से अपने मत निकालना मैं तुम्हें अपना समझता हूँ एक खूबसूरत सपना समझता हूँ   इसलिए ज्यादा सोचता नहीं जो मन में आए, कहता वहीँ अब अपनों से भी सोच कर बोलूँ ? नापुं, तौलूं, तब मुँह खोलूँ ?