Posts

Showing posts from May, 2022

बलिदान

राजगुरु भगत सुखदेव हँसते फाँसी पर झूल गए आजादी के दीवानों को क्यों बचानें वाले भूल गए स्वतंत्रता केवल अहिंसा से हमनें पाई एक छल है ये फाँसी गोली काला पानी कई लोग ख़ुशी से चले गए जब क्रूरता की परिसीमा हुई जगी आग स्वाधीनता की राष्ट्रवादी शाँत रहते कैसे वह बर्बरता सहते कैसे  जब शत्रु सीमा पार करे आवश्यकता तब लड़नें की जब बाँध धैर्य का टूट जाए अपरिहार्यता कुछ करने की हरने पृथ्वी को बुरे तत्वों से विष्णु नें था अवतार लिया अहिंसा केवल सुधीजनों से  दैत्यों से हिंसात्मक प्रतिकार लिया हम बलिदानों को भूल गए निछावर जिन्होनें प्राण किए राष्ट्र की स्वाधीनता हेतु हाँथों में हथियार लिए पर उनकी भी ये सोच न थी याद रहने की होड़ न थी मनोरथ थी केवल स्वाधीनता जीवन की बस एक सोच ये थी

चंद्रशेखर आज़ाद

 आज़ाद है देश ये आज़ाद की कुर्बानी से आज़ाद जिए आज़ाद रहे आज़ादी का जूनून लिए आज़ाद सोच आज़ाद राह आज़ादी के दीवानों संग भगत सिंह राजगुरु सुखदेव अस्फाकुल्लाह सान्याल बिस्मिल संग आज़ादी के दीवाने थे नस नस में बस आज़ादी थी न चिंतित न भयभीत रहे कर्मों में बस आज़ादी थी प्राण भी अपनें त्याग दिए आज़ाद भारत की ख़ातिर आज़ादी इनकी देन है संभाल कर रखना आज़ादी आज़ाद भारत में इन्हें भूलना न तुम कभी

मेरे खत से इंकलाब हो

अंतिम तुम ये काम करो आखिरी मेरे खत से इंकलाब हो भावनाएं मुझमें भी थीं जीने की इच्छा प्रबल पाबंदी-कैद में जीना मगर मुझे नहीं गवारा अब हसरतें बहुत थीं मन में ज़िंदा रहता तो करता पूरी सौंपे जा रहा देश को आज़ादी की स्वप्न अधूरी खत ये एक संदेश मेरा आबाद रहे ये देश मेरा

एक कविता

लिखनी थी मुझे एक कविता ज्यों बहती हुई कोई सरिता समय बहुत व्यतीत किया तब जाकर कोई गीत बना मन नें मेरे एक गीत रचा भावनाओं को सींच रखा कुछ यादों एवं विचारों को पंक्तियों के बीच रखा   मन फिर भी व्यथित रहा क्या लोगों को ये भाएगा क्या मेरी लेखनी है ऐसी कोई छाप छोड़कर जाएगी