बलिदान
राजगुरु भगत सुखदेव हँसते फाँसी पर झूल गए आजादी के दीवानों को क्यों बचानें वाले भूल गए स्वतंत्रता केवल अहिंसा से हमनें पाई एक छल है ये फाँसी गोली काला पानी कई लोग ख़ुशी से चले गए जब क्रूरता की परिसीमा हुई जगी आग स्वाधीनता की राष्ट्रवादी शाँत रहते कैसे वह बर्बरता सहते कैसे जब शत्रु सीमा पार करे आवश्यकता तब लड़नें की जब बाँध धैर्य का टूट जाए अपरिहार्यता कुछ करने की हरने पृथ्वी को बुरे तत्वों से विष्णु नें था अवतार लिया अहिंसा केवल सुधीजनों से दैत्यों से हिंसात्मक प्रतिकार लिया हम बलिदानों को भूल गए निछावर जिन्होनें प्राण किए राष्ट्र की स्वाधीनता हेतु हाँथों में हथियार लिए पर उनकी भी ये सोच न थी याद रहने की होड़ न थी मनोरथ थी केवल स्वाधीनता जीवन की बस एक सोच ये थी