स्मृति

न जाए जो मन से

ऐसी स्मृति हो तुम

ईश्वर की एक अनुपम

अद्वितीय कृति हो तुम


साथ तुम्हारे मुझको सदा

क्यों अपनापन सा लगता

ख़ुशियों भरे बिताए जो पल

एक सुंदर स्वप्न सा लगता


करूँ मैं बातें जब तुझसे

मन मेरा खिल उठता

तुम्हारी हसीन मुस्कान से

तन क्यों सिहर उठता


लगती बोली में तुम्हारी

कोयल सी मधुर मिठास

बढ़ा देती है अक्सर क्यों

मेरे मन की प्यास


हर पल तुम्हें निहारूँ

आँखों में तुम्हें बसा लूँ

नज़रों से ओझल होनें न दूँ

इस तरह दिल में छुपा लूँ


तुम जो ख्याल रखती हो

मुझको संभाल रखती हो

ये तुम्हारा अपनापन ही है

मन अपना विशाल रखती हो


एक बार तुम्हें पाना चाहता हूँ 

तुझमें डूब खो जाना चाहता हूँ

तुम्हारे हृदय में एक कोना चाहता हूँ

जी भर कर तुझमें खोना चाहता हूँ


इसे मेरी आस कह सकती हो

या कह सकती हो मेरी प्यास

चाहता हूँ न जानें क्यों तुझको

स्वयं से ज्यादा तुझपर विश्वास


खो जाऊँ यूँ तुझमें की

फिर ऊबर न पाऊँ मैं

चाहता हूँ शायद तुम्हें इतना

कहीं कुछ कर न जाऊँ मैं

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

अब जाता हूं .....

चक्रव्यूह

वो क्षण