भक्त

अभिमान इतना हुआ की

सोच सिमट कर रह गई

भूल गए सम्मान को

घृणा घर मन कर गई


मुक्ति हेतु है मार्ग जो

वो भक्ति है भक्त की

ईश्वर प्राप्ति को कार्य जो

वो सेतु हीं तो है भक्ति


परम प्रेम श्रद्धा आराध्य से

भक्त की सदा पहचान रही

पूर्ण समर्पण अंतर्मन से

निष्ठापूर्ण साधक परमात्मा प्रति


शब्दों से यूँ खेलकर

जीर्ण मानसिकता दर्शाते जो

स्वयं का अस्तित्व पता नहीं

औरों का जो बताते वो

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