जीवन के कठिन इन राहों पर

 

जीवन के कठिन इन राहों पर

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।। जीवन के कठिन इन राहों पर  ।।



लड़ते भी गए, जूझते भी गए  
जीवन के कठिन इन राहों पर
उठते भी रहे, बनते भी रहे
डटना ही था और करते क्या

कई लोग मिले जो अपने से
कुछ ऐसे भी जो थे अलग  
उँगलियों को कुछ नें पकड़ा था
पत्थर भी बिछाया था कुछ नें

गर सोच सही, विश्वास जो हो
कर्म ऐसा की न द्वेष जिसमें 
तो वक़्त औषध है बन जाता
राहों के काँटे हटते तब

नभ के तारों सा अडिग रहें
चंद्रमा सी हो शीतलता
सूर्य सी अग्नि हो मन में
विस्तारता स्वयं समुद्र सा

कठिनाइयाँ मिट जाएँगीं
पुष्पों की होगी राहें तब
सब सोच की परिकाष्ठा
विश्वास का आधार है

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