रात अंगराई ले रही थी
रात अंगराई ले रही थी
NAVNEET
।। रात अंगराई ले रही थी ।।
रात अंगराई ले रही थी
तारे भी सो चुके थे
ज़िद में शब्दों की दुनियाँ में
हम भी खो चुके थे
ज़िद थी कुछ लिखने की
हठ था सोचने का
चाँद-चाँदनी को देख
विचार बहुतेरे आ रहे थे
ज़िद थी बादलों की भी
नभ पर छाए जा रहे थे
चाँद छुपा जा रहा था
सोचते कैसे, विचार हिलोरे खाए जा रहे थे
- नवनीत
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