चेतना

गर जीवन के कठिन मार्गों
दुष्कर कार्यों को हो भेदना
युक्ति सतत प्रयास केवल
न अन्य विचार पर चेतना

हो चित्त जब भी निराश
आस का न हो दृष्टिपात
स्वयं पर रखना विश्वास
सप्राण हो तुम्हारी चेतना

कठिनाइयों को बेधकर 
उन चुनौतियों से चेतकर
बढ़ता जा तू डगर–डगर
सानंद जीवन का सफर

Comments

Popular posts from this blog

अब जाता हूं .....

चक्रव्यूह

वो क्षण