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Showing posts from August, 2022

स्लो

बहुत हीं धीमें हैं आप गति समझ नहीं आती इतनेंं देर में न जानें नियति क्या कर जाती शायद आपसे दूर चली जाती शायद वापस न आ पाती शायद वो अंतिम घड़ी होती मैं आपके साथ खड़ी होती मेरी बात मानते नहीं कर लूं कैसे ये यकीं कल को ऐसे न रहोगे धीमा हूं, ये न कहोगे मुझे गति से कोई प्रेम नहीं न हीं धीमेपन से घृणा मुझे पर चाल ऐसी तो चलो मगर बाहें पसारे जीवन की डगर

आज़ादी

न कोई सीमा न हीं बंधन धरती उन्मुक्त स्वछंद गगन अपनी सोंच पर अपना अधिकार आज़ादी का बस इतना सार प्रगति पथ पर चले हर कोई राष्ट्र निर्माण का लक्ष्य रहे बस न्याय, विकास का न हो बंधन आज़ाद देश आज़ाद हर जन सच्ची आज़ादी होती  तन मन धन की चिंतामुक्त हंसमुख खुशमय जीवन की

साल पचहत्तर

नहीं हुए हैं साल पचहत्तर भूल जाओ स्वतंत्रता को याद रखो बस उन वीरों को अमर बस उनकी गाथा हो राष्ट्र हमारा पराधीन नहीं था बस अंग्रेज़ों का शासन था परतंत्रता तो ये उनकी थी पास न वैभव न हीं राशन था इतिहास जिसकी सदियों पुरानीं अमर जिसकी सदा रही कहानीं छल आतंक था अधिग्रहण   न की वो पराधीनता था भारत भूमि रही ज्ञान की दायी भाईचारे की बस अलख जगाई रौशनी से प्रदीप्त किया जग भारत नें बस प्रणय सिखलाई आकृष्ट किया सबको प्रभुता से शरण किसी नें, कोई लाभ उठाया लूट लिया बस राष्ट्र को अपनें स्वतंत्र सेनानियों नें वापस दिलवाया