बस यहीं तक यह आसमान अब आगे कोई और जहान एक यात्रा का पड़ाव आया एक यात्रा का बहाव आया कुछ तारे जगमग मैं छोड़ चला कुछ अंधकारमय पल थे बीते कभी था सूरज मेरे आंचल में कभी अमावस में थे रैन बीते पर अंबर कभी झुकने न दिया विस्तार नभ का रुकने न दिया आंधियां भी चलीं तूफान आए था थामा सब अपनें दामन में कभी अपनों ने विश्वास दिया कभी अपनों ने न साथ दिया कुछ पल में हर्ष का मेला था कुछ पल थे जब अकेला था पर नभ सा मैं विशाल रहा हर कोई मुझको भाया था आते थे भले बादल काले टिकते न थे, थे बरस जाते अंधेरों को पर टिकने न दिया और तारों को बिकने न दिया वो चकोर जो थे घेरे चंदा को उन चकोरों को मिटने न दिया अब जाता, पर इस चिंतन में ये भी एक क्षण था जीवन में मुझमें पर कोई बदलाव नहीं हां, मैं जैसा हूं, वैसा हीं सही
बड़ा चमत्कारी था चक्रव्यूह फंस गया जिसमें अभिमन्यु बाहर आने का था बोध नहीं उसे भेदने का था ज्ञान परंतु हो रही चर्चा कैसे बाहर जाएं कैसे चक्रव्यूह तोड़ सब पाएं कहते युधिष्ठिर बढ़ आगे पुत्र संग पीछे हम सारे योद्धा आएं चला वीर तब सबसे आगे थे रौद्र रूप देख शत्रु भागे गोलाकार घूमता चक्रव्यूह चला गया भेदता अभिमन्यु एक दिवस वरदान था जयद्रथ को सब पांडव हारेंगे, छोड़ अर्जुन को था रोक लिया हर एक को उसने साहसी धनुष गदाधारी थे जितने था चला अकेला धर्मपथ पर भेद छः चक्र जा पहुंचा अंदर जहां एक नहीं सात योद्धा थे वह सारे एक से एक भयंकर हो रहा चहुंओर से आक्रमण भटका नहीं पर किंचित मन बाणों से परंतु भेदा हुआ तन पटी शोणित से धरा की कण घेरा गया था हर एक दिशा से यथा व्योम में चंद्रमा निशा से विदित था, वीरगति निकट थी नहीं चेहरे पर भय की रेखा थी मन में तनिक चिंतायुक्त कर्ण मनन हो अंत क्षण में जीवन इस बालक को कष्ट नहीं हो भोंक दिया पल में खंजर को सत्य मार्ग कठिन ही होता बाधाएं अनगिनत हैं रहती बढ़ना है तो बन अभिमन्यु होता नहीं कोई अजातशत्रु
जब आया था मैं तेरे शहर में मन में मिलने की कामना थी मगर न मिल सका मेरा दोष मिलूं, न मिलूं यह भावना थी रूठी थी तुम मुझसे उस वक्त तेरी नाराज़गी सच में जायज़ और फिर आई तुम मेरे शहर मिलन हुआ हमारा उस पहर तेरे आने की तुझसे मिली ख़बर तुझसे मिलने को रहा मैं बेसबर आई घड़ी जो तुमसे मिलन की लगा जैसे कि वक्त है गया ठहर मिलन की आस थी, वक्त पर ऐसा लगा कि आ पाऊंगा मैं या की नहीं आया जो मिलने को तुझसे प्रियतम ठहर गई थी उस वक्त वो घड़ी वहीं है तुझमें आज भी ठहराव वैसा ही सच तुझमें आज भी बहाव वैसा ही बदली होगी शायद तुम, न मुझे लगा तुझको देखते ही हो गया मैं लापता चले गए संग बरसों पुराने दौर में यादें ताज़ा की बहुत तुम और मैं हँसते हुए लम्हें गुजारे साथ साथ अभी भी दोनों में वैसा ही विश्वास उस वक्त भी देखा तुम्हारा अपनापन तुम्हारी सौम्यता संग तेरा सलोनापन पल बीता वो खुशनुमा तुम्हारे साथ में लग रहा था वो था तो नहीं कोई स्वप्न कभी था कश्ती मैं और तुम मझधार थी किसी वक्त तुम मेरी एकतरफा प्यार थी वह एक वक्त था वक्त कबका बीत गया अभी वर्तमान है कबका वह अतित गया बीता वो पल एकदूजे संग हँसते बोलते कुछ इतिहास के...
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