नदी का तट पर है विश्वास बहती तब हीं है अनायास बिखरूंगी मैं नहीं तब तक जब तक तट है, है आभास घने वन में हैं पशु विचरते हैं चिंतारहित चलते फिरते विश्वास, कोई शिकारी नहीं आभास, उनकी दुनियाँ यहीं भक्त का प्रभु पर है विश्वास कठिन राहों में मिलेगा साथ टूटूंगा नहीं, हैं लेते यह प्रण कोई हो न हो, संग भगवन रहता जब विश्वास अटल जीवन का हर मार्ग सरल संचार हर्ष का हो हर पल बहाव जीवन का हो तरल कर ले कोई कितना भी छल कपट न जिनमें वो हैं निर्मल शस्त्र जिनका है होता विश्वास सदा परमात्मा का रहता साथ मानव की पहचान बनी है विश्वास तोड़ना आम बना मिथ्या प्रगति पाने को देखो क्या से क्या यह इंसान बना कोई किसी का क्या करेगा जिसने किया है वहीं भरेगा ये घड़ा पाप विश्वासघात का न्याय योग्य होगा जब भरेगा दिया हुआ ये अवसर पहचानो बदलो स्वयं को तुम अब मानो यूं विश्वास तोड़ना उचित नहीं है विश्वास पर हीं तो सृष्टि टिकी है