परिंदों ने भी पाया उड़ने का प्रयोजन वन से निकलकर पशु कर रहे विचरण उन्हें भी है आश्चर्य कैसा वक़्त है आया कोई खतरा नहीं न भय का हीं साया उड़ रहे स्वछंद हैं घूम रहे खुले तौर से ये वक़्त उनके लिए अद्वितीय उन्होंने कितनीं प्रतीक्षा हैं किए
मानव स्वयं का भाग्यविधाता कर्म जैसा फल वैसा भाग्य क्या बस प्रतिफल कर्मों का परिणाम भाग्य भाग्य एक संचित कर्मफल जो किया सो पाएगा स्वास्थ्य हो या धन यश कर्म हीं दिलवाएगा ब्रह्म रचित भाग्य रेखाएँ कर्म व्यक्तित्व समेकित भाग्य ठान लें कर्म हो ऐसा साथ दे सदा ही भाग्य