चांद का दीदार हुआ
पहले भी कभी हुआ था, आज फिर एक बार हुआ। घनी दोपहरी में अचानक, चांद का मुझे दीदार हुआ। साड़ी में तुम यूं लिपटी हो, लाल रंग का मधुर है जोड़ा। तेरे चेहरे की खूबसूरती ने, मेरे हृदय को है झकझोरा। मासूमियत की हो मूरत सी, यूं ज्यों रति के रम्य सूरत सी। मेंहदी की लालिमा ने तुम्हारा, सुंदरता निखारा और पिरोया। पर क्या तुम मेरे पास हो, या की तुम हो मुझसे दूर। क्या है ये आदतन तुम्हारा, या की शायद तुम मजबूर। जब भी तुम्हारा होता मन, तुम कभी मेरे पास होती। कभी पर यूं तू दूरी बढ़ाती, जैसे न हो मुझे तुम जानती। बस इतना कर दो मेरी खातिर, इन दोनों में कुछ एक रखो तुम या आ हीं जाओ तुम पास हमारे, या हो जाना तो, चली हीं जाओ।