उलझन
हां ना मे उलझा यह मन भ्रम में रहता पूर्ण जीवन हैं पल कभी ऐसे भी आते रहती साथ केवल उलझन करें क्या समझ से होती परे भिन्न भावनाएं मन में उतरे उफ यह दुविधा है कैसी बाहर भला कैसे निकले वक्त सबकुछ है सुलझाता मरहम बन तब है आता कठिनाइयां चाहे हो पड़ी बीतती उलझन की घड़ी